
भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री जवाहलाल नेहरू द्वारा सालारजंग संग्रहालय के सभी संग्रह दीर्घाओं को जनता के लिए 16 दिसंबर, 1951 को खोला गया था. सारे संग्रह 1968 में वर्तमान भवन में लाया गया.
यहां पूर्व और और पश्चिम देशों की सुंदर कलाकृतियां हैं. पुरातनता के आधार पर सालारजंग संग्रहालय में कई अलग-अलग विभाग हैं. प्रथम दीर्घा आगंतुकों को सालारजंग और उनके समय से परिचित कराती है.
दूसरी दीर्घा में दक्षिण भारत के बड़ी और छोटी-छोटी कलाकृतियां, पत्थर की मूर्तियां, वस्त्र, हाथी-दांत, धातु की वस्तुएं, अस्त्र-शस्त्र और भारतीय लघु (मिनियेचर) पेंटिंग हैं. सबसे निचली मंज़िल पर बच्चों के लिए अलग दीर्घाएं है.
वस्त्र और वेशभूषा दीर्घा में मुगल पर्दे, कश्मीरी शॉल और ब्रोकेड के अनोखे नमूने हैं. मिनियेचर पेंटिंग दीर्घा में प्रचुर मात्रा में पाश्चात्य, भारतीय और मुगल मिनियेचर हैं. पेंटिंग दीर्घा में राजा रवि वर्मा, टैगोर भाई, चुगताई और आंध्र प्रदेश तथा भारत के अन्य भागों के तत्कालीन कलाकृतियां हैं. प्रसिद्ध इटली के मूर्तिकार बेनज़ोनी द्वारा बनाई गई "वेल्ड रबेका" एक अद्वितीय कृति है और संग्रहालय का बड़ा आकर्षण है.
मेफिस्टोफिसिस और मार्गरेटा की दोनों तरफ बनी लकड़ी की मूर्ति भी आकर्षक है, यह भलाई और बुराई को दर्शाती है. लकड़ी के एक ही टुकड़े को काटकर दो बिलकुल विपरीत चरित्रों को बनाया गया है.
जापानी विभाग में कशीदाकारी किए हुए रेश्मी पर्दे, सुई से किया हुआ काम, हाथी-दाँत से बनी वस्तुएं और सत्सुमा वस्तुएं हैं.